
का दोष नहीं है, कि मीडिया चौथे और पांचवे पन्ने पर सीलिंग की खबरों को स्थान दे रहा है। बल्कि दोष इन व्यापारी नेताओं का है जो सीलिंग पर सरकार पर दवाब बनाने में विफल साबित हो रहे हैैं।

एक दुकान होने से एक व्यक्ति नहीं कम से कम 50 व्यक्ति का रोजगार छिनता है। इसलिए क्यो न उस सरकारी एजैैंसियों पर भी कार्रवाई की जाए जिन्होंने इस अवैध निर्माण को पनपे दिया और लोगों की जरूरत के मुताबिक संसाधन उपलब्ध नहीं कराए।
अवैध कालोनियों में मजबूरी में रहे है लोग
अवैध कालोनियों दिल्ली की राजनीति की सबसे बड़ी दुकान बन चुकी है। सभी पाटियां चुनाव के समय इन्हें नियमित करने और इनमें सुविधाएं देने का लालच देकर वोट तो ले जाती है, और सरकार भी बना लेती है, लेकिन इन कालोनी वासियों को दिल्ली में सरकार बनने के बाद मिली है तो सिर्फ दुत्कार। अपनी-अपनी राजनीति का थीकरा निगम के लोग और राज्य सरकार के लोग करते हैैं। यह लोग एक साथ आकर इन कालोनियों को नियमित करने के लिए कदम क्यों नहीं उठाते समझ से परे है। शायद सबको अपनी राजनीति खत्म होने का ठर है। लेकिन लोगों का जीवन तो बर्बाद हो रहा है। यहां रहने वाले लोग शौक से अपना जीवन यापन नहीं कर रहे है। सभी लोगों को पार्किंग और पार्क की सुविधा चाहिए जिसे देने में निकाय और सरकार विफल साबित हुई है।
कांग्रेस का जिक्र इसलिए नहीं हैक्योंकि यह समस्या कांग्रेस की बनाई हुई है
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