नई दिल्ली। निहाल सिंह । । जब 65 वर्षीय सीमा को अपने फेफड़े के कैंसर के बारे में पता चला तो उनकी पूरी दुनिया बिखर गई। उनके लिए यह एक झटके के रूप में सामने आया खासकर तब जब कि वे धूम्रपान नहीं करती थी और एक स्वस्थ्य जीवन शैली का पालन कर रही थी। वह करीब 40 सालों से अपने पति के धूम्रपान की वजह से परोक्ष धूम्रपान का शिकार हो रही थी। बिना किसी गलती के यह महिला दर्दनाक किमियोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी से गुजर रही हैं , लेकिन इस बिमारी के अंतिम चरण पर यह इलाज भी कोई बहुत ज्यादा प्रभावकारी नहीं होता है। आत्मग्लानि से ग्रस्त उनके पति ने धूम्रपान छोड़ दिया , लेकिन यह एहसास होने में बहुत देर लग गई। अगर उन्हें समय से यह एहसास हो जाता तो वे अपनी पत्नी को इस खतरनाक बीमारी से बचा लेते। राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट के वरिष्ट ओंकोलॉजिस्ट डॉ उल्लास बत्रा कहते हैं कि यह कोई अकेला उदाहरण नहीं है , हम अक्सर ऐसे मामले देखते हैं , जो अक्सर अपरोक्ष धूम्रपान का परिणाम होते हैं। तंबाकू रहित दिवस मनाते हुए हमें न सिर्फ युवाओं को धुएं के खतरे से बचाना ही आवश्यक है , बल्कि इसे अगली पीढी में जाने से
Blog of Journalist Nihal Singh