देखों Abp न्यूज दिवाली पर पटाखों से होने वाले शोर का दिखा रहा है कि हमें पटाखे नही जलाने चाहिए.. सराहनीय है. लेकिन कभी ईद पर बेजूबानो की बली दी जाने वाली प्रथा का भी विरोध होना चाहिए...

प्रिय मान्यवर, बंधुवर में आपको सूचित कर रहा रहा हु कि में निहाल सिंह मेने भीम राव अम्बेडकर कॉलेज से पत्रकारिता कि पढाई को पूरा कर लिया हैं.. और आप अवगत होंगे कि हर विद्याथी को कॉलेज से निकलने क बाद एक नौकरी कि तलाश होती हैं.. इस तरह मुझे भी एक नौकरी कि तलाश हैं... आप पिछले लगभग दो वर्ष से मेरे व्यवहार से भी से भी अच्छी तरह परिचित हो गये होंगे. और नौकरी किसी भी संस्थान में मिले चाहे और प्रिंट और चाहे और किसी में भी में तैयार हु. बस में किसी भी तरह से शुरुवात करना चाहता हु. मुझे आशा हैं कि आप किसी न किसी रूप में मेरी मदद करेंगे ... जब आपको लगे कि आप मेरी मदद कर सकते हैं तो कृपया मुझे बस एक फोन कॉल कर दे में इस मेल के साथ अपना रिज्यूमे भी सेंड कर रहा हु आप देख ले.. धन्यवाद निहाल सिंह E- MAIL- nspalsingh@gmail.com CURRICULUM VITAE NIHAL SINGH M o b il e : 0 E - M a il : nspalsingh@gmail.com. Blog : aatejate.blogspot.com. Career Objectives:- Looking for a position in a result-oriented organization whe
निहाल जी,
ReplyDeleteप्रश्न का जवाब दिए बिना प्रतिप्रश्न करना जाक़िर नायकी कुतर्क बुद्धि की बडी पुरानी चाल है.
जनाब नौमन अहमद को जवाब चाहिए तो प्रत्यक्ष प्रमाण देते है शाकाहारियोँ मेँ कोमल सम्वेदना होने का यह प्रमाण है कि बँगाल मेँ देवी के समक्ष पशुबली कुरिति का कोई बचाव नही करते, न चिडते है न प्रचँड प्रतिकार करते है, अपने धर्म की कुरितियोँ का भी विरोध समता भाव से स्वीकार करते है. और देश मेँ कईँ जगह से इस कुरिति को दूर करने मेँ सफल भी हुए. यह है जीवदया के प्रति कोमल सम्वेदनाएँ.आप तो करोडोँ शाकाहारियोँ मेँ से शायद 5-15 दुराचारियोँ के नाम गिना भी देँगे, लेकिन हम देते है माँसाहारियोँ की क्र्र मनोवृति का प्रमाण....आप स्वयँ, आप पशुहिँसा के आरोप से बिदक उठते है, अपने धर्म से सम्बँधित कुरिति का उल्लेख आने मात्र से आक्रमक हो उठते है और असम हिँसा की धौस देने लगते है. यह होती है आप जैसे माँसाहारियोँ मेँ क्रूर मनोवृति.(यह प्रमाण देने के लिए उदाहरण मात्र है जरूरी नही सभी के सभी माँसाहारी क्रूर प्रकृति हो), किंतु मवेशी की हत्या बिना क्रूर भाव लाए सम्भव नही, इसी लिए उन हत्यारोँ को कसाई कहा जाता है, जबकि सब्जी मेँ जीवन हो सकता है पर उसे काटने वाले को कसाई नही कहा जाता. इसलिए बिना कसाईपन के माँस प्राप्त नही किया जा सकता.
पेड-पौधोँ और जानवरो दोनो मेँ क्रूरता के भावोँ मेँ भारी अंतर है. नौमन आपने गूँगे बहरे बच्चे की माँ द्वारा ज्यादा ख्याल रखने का उदाहरण दिया था न? यदि किसी माँ के दो बेटे हो एक गूँगा-बहरा और दूसरा सर्वाँग स्वस्थ, दोनोँ मेँ से किसी एक के जीवन समाप्ति का आदेश हो और चुनाव का कहा जाय तो माँ उसी का बचाव करेगी जिसका जीवन पूर्ण आसान सुखप्रद सम्भावना लिए हो, उसका नही जिसका जीवन पहले से ही दूभर हो. विकास की दृष्टि से भी विकसित जीव अधिक मूल्यवान होता है.
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